मियाँ नरेंद्र मोदी...

आज सुबह से अजीबो ग़रीब वाक़िये हो रहे हैं... सबसे पहले भारतीय रेलवे की ट्रेन अपने समय से अनुमानित आधे घंटे पहले स्टेशन पहुँचती है फिर स्टेशन के बहार एक टी स्टॉल पर नरेंद्र मोदी जी की चाय...
मैं नरेंद्र मोदी इसलिए कह रहा हूँ चूंकि नीचे लगी तस्वीरें उन्हीं मियाँ के टी-स्टॉल की है जो ख़ुद को नरेंद्र मोदी होने का दावा करते हैं...
बातचीत के दौरान मोदी की खूबियाँ गिनाने लगे...
मियाँ रहने वाले आज़मगढ़ के और भक्त मोदी के... अजीब विडम्बना है...
आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश का वो जिला है जहाँ मुसलमानों की आबादी शायद सबसे अधिकतम है... अलबत्ता 10 लाख की आबादी में ऐसे छुट-पुट मोदी भक्त मिल ही जाते हैं..
सैकड़ों सवाल करने पर भी मियाँ ने अपना असली नाम नहीं बताया.. बस इसी बात पे अड़े रहे की नरेंद्र मोदी ही नाम है... मैं जान बूझ कर बार-बार उन्हें कुरेदता रहा... ख़ुदा का वास्ता देने पर कहने लगे दरअसल असली नाम गुफ़्रान अहमद है मगर मैं जात-पात पर यक़ीन नहीं करता... मोदी जी मेरे लिए आदर्श हैं... मैं सिर्फ़ उनके आदर्शों पे चलता हूँ...
मुद्दे की बात ये है की मोदी अगर आदर्श हैं तो मोदी की बातें क्यों नहीं... एक गिलास चाय मांगी तो कोने में जमे कीचड़ में से चाय के जूठे गिलास निकालने लगे... अब तो मुझे उन मियाँ में साक्षात् मोदी नज़र आने लगे... और कीचड़ को देख कर मोदी जी का स्वछ भारत मिशन... मैंने मियाँ को लगे हाथ टोक दिया-
सिर्फ मोदी के नाम को आदर्श मानते हैं या उनकी कार्यशैली और विचार धारा को भी...
मियाँ बोले- मतलब?
मैंने कहा- भाई साहब! जिस पानी में आप उन गिलासों को धुल रहे हैं उसका रंग भी देख लीजिये... शौच धोने लायक भी नहीं है वो पानी...
मियाँ मुद्दे का विकल्प निकालते हुए बोले- प्लास्टिक के गिलास में दे दूँ?
मैं मूक हो गया... अख़बार क़िताबों में पढ़े लेख याद आने लगे की प्लास्टिक के गिलास का उपयोग नहीं करना चाहिए और फलाना फलाना...
मैं निर्णय नहीं कर पा रहा था की चाय पियूँ या मना कर दूँ... सवेरे 6.45 का समय था आधे से ज़्यादा मार्किट बंद थी... साथ में लगी बेंच पर मोदी जी के कुछ डेली के कस्टमर बेहद ख़ुश टांगो पे टाँगे चढ़ाये चाय की चुस्कियां ले रहे थे, कुछ समोसे जलेबी खा रहे थे तो कुछ सिगरेट के धुंए उड़ा रहे थे... इन सब के बीच मैं स्तब्ध, मियाँ जी को कीचड़ से जूठी पड़ी प्लेटें और कांच के गिलास निकालते देख रहा था... 
थक हार कर मैंने भी नज़रे घुमा ली और मियाँ जी को 1 गिलास चाय देने को बोला...मियाँ जी की दुकान पर सजी भारत स्वछता अभियान की झांकी से 10 क़दम दूर हट कर मैंने 4-5 घूँटों में चाय तमाम की और वापस आकर अपनी गाड़ी का इंतज़ार करने लगा...
देश के एक छोटे से हिस्से में एक बेहद ही छोटी सी दुकान के मालिक मियाँ नरेंद्र मोदी उर्फ़ गुफ़्रान अहमद की ये बड़ी-बड़ी बातें सुनकर आपको भी शायद उतना ही अचम्भा हो रहा होगा जितना मुझे उस वक़्त हो रहा था...
महसूस यही होता है कि हवा बदल रही है... देश बदल रहा है... शायद!
हालांकि मेरा ये सब कुछ लिखना उन मियाँ नरेंद्र मोदी तक तो नहीं पहुंचेगा लेकिन फिर भी... देश और हवा बदलने के साथ-साथ हमें अपने आदर्शों पर भी काम करने की ज़रूरत है... क्योंकि शायद हमारी आधी आबादी को अब भी आदर्श के सही मायने नहीं पता...
नोट: इस पोस्ट को अन्यथा न लें... चूंकि नरेंद्र मोदी देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं तो बिलकुल किसी के भी आदर्श हो सकते हैं... और होने भी चाहिए... मुझे मोदी जी, उनकी विचारधारा, उनके किये अनेक नेक कार्य से कोई आपत्ति नहीं... उनकी जगह और कोई भी होता तो शायद शुरूआती दौर में वही कुछ करता जो मोदी जी अभी देश के भविष्य के लिए कर रहे हैं... ख़ैर मेरी प्राथमिकताएं दूसरी हैं... लेकिन सोचने की बात और महत्वपूर्ण ये समझना है की आप अपने आदर्श को कितना आदर्श मानते हैं...

टिप्पणियाँ

  1. मस्त लिखा है बाबू.....बहुत से वाकयात होते हैं ऐसे....जो एक मजेदार अनुभव दे जाते हैं.....पर साथ ही एक सवाल भी छोड़ जाते हैं.....

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