मेरी शुरुआत...
अपनी टीचर्स और कुछ बड़ी हस्तियों से प्रोतसाहित होकर जाने कब से मैं भी ब्लॉग लिखने का मन बना रहा था | जब कभी न्यूज़ चेनेल या प्रोग्राम में, अमिताभ बच्चन या अपने जैसे आम लोगो को ब्लॉग आदि लिखता देखता था, तो यही सोचता था की-
"यार ! काश मेरी भी भाषा उतनी सशक्त और सटीक होती, जितनी की धर्मवीर भारती, प्रेमचंद्र और महादेवी वर्मा की हुआ करती थी | तो फिर तो मैं भी बिना किसी डर और हिचकिचाहट के लोगो तक अपने मनो भावों, अपनी सोच और अपने विचारों को बाँट पाता |"
हर सवेरे, इन्टरनेट पर काम शुरू करने के साथ ही, दिमाग में बस ये ख्याल आता था की आखिर अलमारी में रखी मेरी उस डायरी के पन्नो पर जो शब्द मैंने उकेरे हैं, जिन शब्दों को मैंने रात-रात भर जाग कर, 3.00 / 4.00 बजे तक बैठ कर इतनी मेहनत से संजोया है, कहीं वे ऐसे ही धरे-धरे अपना अस्तित्व तो नहीं खो देंगे, कहीं वे सिर्फ और सिर्फ दीमकों का आहार बनकर तो नहीं रह जायेंगे |
कॉलेज से छुट्टियों में जब भी मैं घर आता हूँ, मेरी माँ हमेशा मुझे यही समझाती है- "उन शब्दों को डायरी तक ही सीमित मत रख मूर्ख, उसे ब्लॉग पर लिख, बाँट, उसे और सुधारने की कोशिश कर |"
मेरी माँ भी शब्दों का सटीक प्रयोग करना भली भाँती जानती हैं |
और वहीँ पापा भी शब्दों से बड़ी सरलता से खेलते हैं |
माँ की डायरियों को पढ़ कर मैं बहुत-सी अच्छी-अच्छी चीजे अपनी डायरी में नोट कर लेता था |
आज जो कुछ भी लिख पता हूँ या लिख पाने में सक्षम हूँ वो मैंने माँ की डायरियों को पढ़ते-पढ़ते ही सीखा है |
ब्लॉग लिखने की प्रेरणा मुझे मेरी माँ ने दी है |
मेरी माँ मुझे बहुत डांटती हैं की मैं एक 'मास कम्यूनिकेशन' का छात्र हूँ पर मुझमे उन छात्रों जैसा एक भी गुण नहीं है |
और जब आपकी एक उम्र हो जाये तो ऐसी बाते थोड़ी शर्मसार करने वाली लगती हैं और कई बार उन पर गुस्सा भी आता है |
वैसे वो "माँ" हैं उन्हें कहने का पूरा-पूरा हक़ है | और फिर कहा है, तो गलत तो कहा नहीं होगा |
व्यक्ति अपनी गलतियों को जितनी जल्दी समझ ले उतना अच्छा होता है और उनसे सीखना प्रारंभ कर दे, तब तो क्या कहने ?
आज मैं शायद अपनी गलतियों को पहचान भी रहा हूँ और इतना भरोसा है की उनसे सीखने की कोशिश भी कर रहा हूँ और हमेशा करता रहूँगा |
खैर ब्लॉग का ये सिलसिला सही भी है शब्दों को शुरुआत में ऐसे ही किसी एक मंच की आवश्यकता होती है, डायरी के पन्नो तक सीमित होकर रह जाने से शब्दों की महत्ता ख़त्म-सी हो जाती है |
आज इसकी शुरुआत कर रहा हूँ और आशा करता हूँ -
जैसे अकेले व खामोश पालो में मेरा साथ मेरी एक मात्र डायरी दिया करती है, वैसा ही एक मित्रतापूर्ण व्यवहार मुझे इस ब्लॉग से भी मिलेगा....
खैर आशओं पर तो दुनिया टिकी है....
ब्लॉग तो बहुत छोटी-सी बात है |
शेष कल |
शुभ रात्री.
bahot achcha lag raha hai..ye dekh kar k mera chhota sa beta ab itna bada ho gaya hai.....itni achchi aur bhaavpoorna baate karne laga hai....bahot khush raho our qaamyaab raho....isi ummeed k sath.....
जवाब देंहटाएंsmita
bahot sundar... babu itna sundar aur bade bade shabdo ka prayog karne laga hai, meine kabhi socha b nai tha... bahot hi acha.. aur bhi likho babu..
जवाब देंहटाएंagle blog ke intzaar me..
Betu
Thank you Betuu...
जवाब देंहटाएंkoshish karta rahunga....
tumse bhi mummy papa jaisa likhne ki umeed hai...
jald hi apna blog bnao...
waiting.
achha ban para hai...
जवाब देंहटाएंper shabdon ki gahrayee main itna bhi mat gum ho jao ki tartamya tut jayee..
ye meri soch hai galat bhi ho sakta hai...
achaa likha hai.. or likho
agla blog bhi jald likhna...