तुम याद बहुत आओगे दोस्त...

ऑफिस में  12 घंटे की ज़द्दोज़हद के बाद मैं ये सोच के घर के लिए रवाना हुआ की कल छुट्टी है और कल बहुत से काम निबटाने हैं. रास्ते में फोन की घंटी टनटनाई एक बड़ा ही विचलित कर देने वाला मैसेज  मिला. उस मैसेज को पढ़ कर अब भी रूह काँप उठ रही है. मैसेज में साफ़ शब्दों में लिखा था की "खरे नहीं रहा !"

पढ़ के ऐसा लगा जैसे रोड पर चलते-चलते अभी गश खा के गिर जाऊंगा…  एक बार को विश्वास नहीं हुआ मैंने दुबारा मैसेज को पढ़ा.… अब मैं उस बात पर विश्वास नहीं करना चाहता था.… व्याकुलता अपने चरम पर थी.... अचानक बैठे बिठाये ऐसा कैसे संभव है.... क्या हुआ होगा? कैसे हुआ? कब हुआ? कहाँ हुआ? क्यों हुआ? अनेक सवाल एकाएक मन में कुलबुलाने लगे...

किस्से पूछूं? फ़ोन की एड्रेस बुक खंगाल डाली … कोई परिणाम सामने न आने पर मैंने आनन फानन में शुभम के नंबर पे ही फोन घुमा दिया… "द नंबर यू आर ट्राइंग टू कॉल इज़ कर्रेंटली स्विचड ऑफ"… मन और व्याकुल हो उठा... अब क्या करूँ? अब किस्से पूछूं?

दोस्तों के मैसेज एक के बाद एक दस्तक दे रहे थे… हर किसी को ये पता था की हुआ क्या है मगर ये किसी को नहीं पता था की कैसे कब कहाँ और क्यों हुआ? 10 लोगों के मुंह  से 10 अलग अलग कहानियां सुन कर अब गुस्सा आने लगा… शुभम के पड़ोसी और एक करीबी संबंधी को फोन मिला कर मैंने मामले को पुख्ता किया… फोन पर बात होने के दौरान ये पता चला की खबर सही है और 15 जुलाई दोपहर 3.30  बजे शुभम को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहाँ इलाज के दौरान उसे बचाया नहीं जा सका... इन सारी बातों  के बीच घर का आधा रास्ता कब कट गया मालूूम नहीं चला… घर पहुँच कर दोस्तों को फ़ोन कर के खबर दी.… कुछ दोस्तों से घटना का भी पता चला.… 

शुभम का वही हँसता खिलखिलाता चेहरा आँखों के सामने आने लगा… क्लास 1 से लेकर 12 तक साथ बिताया समय आँखों के  सामने घूम रहा था… उसके परिवार की चिंता, शाश्वत और शिप्रा का ध्यान दिमाग में उथल-पुथल कर रहा था… ध्यान हटाने की लाख कोशिशों के बावज़ूद दिमाग स्थिर नहीं हो पा रहा था… मैं शाश्वत और शिप्रा को फ़ोन करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था… मैं स्तब्ध था... चुपचाप आकर कमरे में बैठ गया... फोन की घंटी निरंतर टनटनाई जा रही थी.... अब बस मन में एक ही सवाल था की सवेरे मैं अगर अस्पताल जाऊंगा तो क्या मंज़र होगा… क्या स्तिथि होगी अंकल आंटी और शिप्रा शाश्वत की… 

मन अब भी ये मानने को तैयार नहीं था की ऐसी कोई घटना वाकई घटी  है… घड़ी में 12.15 बज रहे थे... आँखों में नींद का नामो निशान नहीं था .… रात के 12 से सवेरे के 7 कब बज गए आभास ही नहीं हुआ.... दिमाग में ये बात घर कर रही थी कि आखिर  ऐसा  हुआ  क्या होगा जो शुभम यूँ एकाएक साथ छोड़ दिया.… साहस जुटा कर मैंने एक बार फिर फोन की एड्रेस बुक खंगाली और सारे दोस्तों को फिर मैसेज किया… 7. 30 बजे भी जब नींद ने दस्तक नहीं दी तो मैंने सफदरजंग अस्पताल जाने का फैसला किया… फोन पर विदुषी से बात होने पर मालूम हुआ की गौरव, विनय और विदुषी सवेरे 6  बजे ही अस्पताल पहुँच चुके है… अगले 20 मिनट में मैं भी सफदरजंग अस्पताल पहुँच गया… इमरजेंसी के बाहर गौरव, विनय और विदुषी के उतरे चेहरे देख कर मैं निशब्द था… गौरव के बगल मैंने भी एक कोना पकड़ लिया… उनके चेहरे देखकर मैं शुभम के परिजनों पर बीत रही इस गहन पीड़ा का सिर्फ अंदाजा लगा रहा था.... समय बीतता गया… 2  घंटे के भीतर और भी दोस्त इकट्ठे हो गये… हम बैठ कर शुभम के मम्मी पापा के आने इंतज़ार कर रहे थे… 

10 बजे करीब इमरजेंसी के सामने गाड़ी रुकी.... गाड़ी के भीतर बैठी शुभम की मम्मी उसकी छोटी बहन शिप्रा और उसके पापा  को देखने का साहस मैं नहीं जुटा पा रहा था… मैंने मुंह दूसरी ओऱ घुमा लिया… रोने की आवाज़ें हाथ पाँव के रोयें खड़ी कर रही थी… शुभम के पापा ने आकर हम सबको पकड़ कर जोर जोर से रोना शुरू कर दिया… विदुषी, अनु और नेहा आंटी और शिप्रा को सँभालने में लगे हुए थे… अंकल की बातों से साफ़ प्रतीत होता था की वो भीतर तक टूट चुके हैं... उन्हें संभाले भी तो कैसे... घूम फिर कर बस यही बात जुबान पर आ रही थी की अंकल हिम्मत रखिये... अंकल हमसे सवाल करते थे "अब हिम्मत रख कर क्या करूँ बेटा?"... इस बात का जवाब हम में से किसी के पास नहीं था... आधे घंटे बीत जाने के बाद अंकल ने शुभम को देखने की इच्छा जाहिर की… शुभम को मॉर्चुरी में रखा गया था… अब मॉर्चुरी तक जाना अपने आप में एक साहस का कार्य था… मैं, अभिनव, गौरव, विनय, नेहा, अमृतांश, इलू और अनु अंकल आंटी और शिप्रा को लेकर मॉर्चुरी की ओर बढ़े… 

 एक एक कदम भारी पड़  रहा था.… न जाने कितने ही अजीबो गरीब चेहरे मेरे आँखे के सामने बनने बिगड़ने लगे… दरवाज़े तक पहुँचते ही मैं  हिम्मत हारने लगा... अजीब-सी बू के बीच सफ़ेद कपड़ों में लिपटे पड़े शरीरों के ढेर को देख कर डर लग रहा था… शुभम को आखरी बार देखने की हसरत में मैंने सब कुछ भूल कर अंदर जाने का फैसला किया… पीले रंग के स्ट्रेचर पर, सफ़ेद रंग के कपड़ो में लिपटा  शुभम का ठंडा शरीर पड़ा था… अंकल आंटी शिप्रा और शुभम के बाकी परिजन खूब ज़ोर ज़ोर से रो रहे थे… मेरी हिम्मत फिर टूटने लगी… शुभम के चेहरे की ओर जाने का साहस मुझमे नहीं थी.… मैं उसके पैरों के पास खड़ा हो गया… 8  9 घंटों से रखा शरीर अब पीला पड़ने लगा था… मैंने शुभम के पैरों को हाथ लगाया… शरीर का तापमान मानो कोई 5  डिग्री से भी कम… मन मारते हुए मैं शुभम के चेहरे की ओर बढ़ा.… एक बेहद खुशमिजाज़ दिलचस्प और मज़ाकिया इंसान को इतना खामोश मैंने आज से पहले कभी नहीं देखा था…. पीला पड़ चुका चेहरा और नाखून, सूखे होंठ, एक हाथ छाती पर और दूसरा पेट पर... बेहद गंभीर और खामोश.. गौरव ने शुभम के चेहरे को वापस ढक दिया... मैं वहीं खड़ा सबके चेहरों को देख रहा था… सभी के आंसू और रोने की आवाज़ें  शुभम को वापस आने के लिए विवश कर रही थी शायद… 

शुभम कि आखिरी झलक और उसकी सारी यादें समेटे हम मॉर्चरी से बाहर आ गये… लोग जुड़ते गए, आते-जाते रहे… बीतते बिताते शाम के 5 बजे गये… शाश्वत के आने के इंतज़ार में हर कोई राहें तक रहा था… फैसला ये हुआ की अंतिम संस्कार की प्रक्रिया हापुड़ के गंगा घाट पर की जाएगी...

उसमें शामिल होना शायद हम नौकरी पेशा लोगों की किस्मत में नहीं था... सभी की अपनी व्यस्तता थी... निर्णय ये हुआ कि शुभम को शाम 6 बजे आख़िरी विदाई यहीं से देकर हम सब घर को निकल जायेंगे...

शाम को 6 बजे पोस्टमार्टम के बाद शुभम का पार्थिव शरीर उसके परिजनों को सौंप दिया गया... कुछ दोस्तों ने आख़िरी दफ़े शुभम को देखने की इच्छा ज़ाहिर की... मैंने जाने से मना कर दिया... इस दौरान हम अंकल आंटी और शिप्रा से मिल कर घर के लिए निकल पड़े... शायद शाश्वत के आने के पश्चात सभी वहां से हापुड़ शुभम के अंतिम संस्कार के लिए निकल पड़े होंगे... 

खैर! इन सब के बीच एक सवाल जिसका जवाब मैं अब भी तलाश रहा हूँ वो ये कि भगवान ऐसा क्यों करते हैं... शुभम जैसे ख़ुशदिल इंसान को इतना जल्दी क्यों बुला लिया... दुनिया में और भी बहुत से बुरे लोग है...

तुम्हे अभी नहीं जाना था शुभम... मैं तो तुमसे पिछले 6 सालों में मिला भी नहीं था...तुमने तो कई लोगो से मिलने के वादे भी किये थे... जिनमें मैं भी शामिल था... ये बात मुझे कई दोस्तों से पता चली...

तुम्हारा चेहरा अब भी आँखों के सामने है... तुम्हारी यादें आज भी क्लास की उन्हीं कुर्सियों पर जीवित है जहाँ कभी हमने साथ बैठ कर टीचरों को परेशान किया था... जहाँ क्लास के बाहर पनिशमेंट काटी थी.... जहाँ दूसरों के टिफ़िन छीन कर खाये थे... जहाँ साथ मार भी खायी थी... तुम्हारे जाने से सभी को एक गहरा झटका लगा है... मन वाकई व्यथित है... पर मेरी यही आशा है की तुम जहाँ कही भी रहो भगवान तुम्हे शान्ति दें और तुम्हारे परिवार को ऐसे दुख की घड़ी को सहने का साहस भी प्रदान करे...तुम हम सबके लिए अब भी जीवित हो... और हमेशा रहोगे...

तुम याद बहुत आओगे दोस्त... हमेशा...

टिप्पणियाँ

  1. Babu mein b shubham ko jaanti thi., bahot bura lag raha hai.. Bahot hi shocking hai.. Dukh hua sun kar..
    Tumne bahot hi sundar likha hai.. Mein vaha gayee nahi per isko padh k sab kuch jaise dekh rahi hu apne samne..
    Bhagwan uski family ko himmat de.. RIP Shubham

    जवाब देंहटाएं
  2. Babu mein b shubham ko jaanti thi., bahot bura lag raha hai.. Bahot hi shocking hai.. Dukh hua sun kar..
    Tumne bahot hi sundar likha hai.. Mein vaha gayee nahi per isko padh k sab kuch jaise dekh rahi hu apne samne..
    Bhagwan uski family ko himmat de.. RIP Shubham

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  3. बेटा.... मेरी नजरों के सामने भी वही यू. के.जी . वाला शुभम बार बार आरहा है.....स्वस्थ ...लम्बा और सुन्दर और बातूनी....कभी कभी ईश्वर की ज्यादतियों से मन व्यथित हो जाता है.....ये ज्यादती ही तो है.......कुछ भी नहीं है कहने को.....बस यही प्रार्थना है कि..ईश्वर कभी किसी माँ बाप को ऐसा दिन न दिखाए........श्रद्धांजलि

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